ADVOCATE BAJRANG & ASSOCIATES,GORAKHPUR
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Friday, March 2, 2018
Sunday, November 17, 2013
Sunday, November 10, 2013
न्यायालय में मुझसे विवाह विच्छेद विषय पर क़ानूनी सलाह हेतु एक श्रीमान मेरे पास आये और अपनी तमाम समस्याओं के साथ मुझको ये भी बताया कि वे अपने विवाह के बाद 7 वर्ष का समय बिता चुके हैं इसलिए क्या अब वो क़ानूनी रूप से दहेज़ उत्पीड़न कानून से सुरक्षित हैं या नहीं ? 7 वर्ष कि अवधि के सम्बन्ध में प्रायः भ्रम देखने को मिलता है। लोगों को ये लगता है कि 7 वर्ष बीत गया अब उन पर 498-A नहीं लागू होगा। जबकि ऐसी बात नहीं है। 7 वर्ष कि अवधि का सम्बन्ध सिर्फ उपधारणा से है।
Thursday, September 26, 2013
Procedure for Filing for Divorce
The
procedure for seeking a divorce by mutual consent in India, is
initiated by filing of a petition, supported by affidavits and
annexure's sworn by both the spouses mutually/ jointly, in the district
court having jurisdiction over the matter. However, such a divorce may
be filed by the couple only after they have lived apart for at least a
year. A petition supported with affidavits for divorce should be
presented by the both the spouses, this is known as the First Motion
Petition for Mutual Consent Divorce, this should contain a joint
statement by both the parties to the Petition that due to their
irreconcilable differences, they are no longer stay together and should
be granted a divorce by the court. After six months thereafter, the
Second Motion Petition for Mutual Consent Divorce ought to be filed by
the couple and when they are required to reappear in the court to
confirm to the earlier motion. A gap of six months commonly referred to
as the cooling off period, is given between the two motions, so as to
offer the estranged couple an opportunity and adequate time to
reconsider their decision of dissolving their marriage. However after
the expiry of such period, if the second motion is filed by the couple
and the judge is satisfied that all the necessary grounds and
requirements for the divorce have been met, a mutual divorce decree may
be granted by the Court. If either party withdraws the divorce petition
within 18 months of the filing of the First Motion Petition, the court
will initiate an enquiry and if such party continues to refuse his/ her
consent to the divorce petition, the court shall no longer have the
right to grant a divorce decree on such petition. But if the divorce
petition is not withdrawn within the stipulated 18 months, the court
will pass a divorce decree on the basis of mutual consent between both
parties. Nevertheless, not all estranged couples mutually agree on the
desirability, grounds or the conditions for seeking such divorce
mutually. In such cases, one party files for divorce in the court, but
the other contests it. Typically, some of the grounds on which either
spouse may file for a divorce in India are:
Infliction of physical and/or mental cruelty/ torture;
Adultery or any other sexual relationship outside marriage;
Willful desertion or abandonment for a continuous period of two years in India;
Insanity or suffering from incurable disease; and
Sexual impotency or inability to perform sexual intercourse.
Adultery or any other sexual relationship outside marriage;
Willful desertion or abandonment for a continuous period of two years in India;
Insanity or suffering from incurable disease; and
Sexual impotency or inability to perform sexual intercourse.
Sunday, March 24, 2013
क्या है एफआईआर :- किसी अपराध की सूचना जब किसी पुलिस
ऑफिसर को दी जाती है तो उसे एफआईआर कहते हैं। यह
सूचना लिखित में होनी चाहिए या फिर इसे लिखित में परिवतिर्त किया गया हो।
एफआईआर भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता 1973 के
अनुरूप चलती है। एफआईआर संज्ञेय अपराधों में होती है। अपराध संज्ञेय नहीं है तो एफआईआर नहीं लिखी जाती।
आपके अधिकार
- अगर संज्ञेय अपराध है तो थानाध्यक्ष को तुरंत प्रथम सूचना रिपोर्ट ( एफआईआर ) दर्ज करनी चाहिए। एफआईआर की एक कॉपी लेना शिकायत करने वाले का अधिकार है। एफआईआर दर्ज करते वक्त पुलिस अधिकारी अपनी तरफ से कोई टिप्पणी नहीं लिख सकता , न ही किसी भाग को हाईलाइट कर सकता है। संज्ञेय अपराध की स्थिति में सूचना दर्ज करने के बाद पुलिस अधिकारी को चाहिए कि वह संबंधित व्यक्ति को उस सूचना को पढ़कर सुनाए और लिखित सूचना पर उसके साइन कराए। एफआईआर की कॉपी पर पुलिस स्टेशन की मोहर व पुलिस अधिकारी के साइन होने चाहिए। साथ ही पुलिस अधिकारी अपने रजिस्टर में यह भी दर्ज करेगा कि सूचना की कॉपी आपको दे दी गई है।
- अगर आपने संज्ञेय अपराध की सूचना पुलिस को लिखित रूप से दी है , तो पुलिस को एफआईआर के साथ आपकी शिकायत की कॉपी लगाना जरूरी है। एफआईआर दर्ज कराने के लिए यह जरूरी नहीं है कि शिकायत करने वाले को अपराध की व्यक्तिगत जानकारी हो या उसने अपराध होते हुए देखा हो।
- अगर किसी वजह से आप घटना की तुरंत सूचना पुलिस को नहीं दे पाएं, तो घबराएं नहीं। ऐसी स्थिति में आपको सिर्फ देरी की वजह बतानी होगी।
- अगर थानाध्यक्ष सूचना दर्ज करने से मना करता है , तो सूचना देने वाला व्यक्ति उस सूचना को रजिस्टर्ड डाक द्वारा या मिलकर क्षेत्रीय पुलिस उपायुक्त को दे सकता है , जिस पर उपायुक्त उचित कार्रवाई कर सकता है।
- एफआईआर न लिखे जाने की हालत में आप अपने एरिया मैजिस्ट्रेट के पास पुलिस को दिशा - निर्देश देने के लिए कंप्लेंट पिटिशन दायर कर सकते हैं कि 24 घंटे के अंदर केस दर्ज कर एफआईआर की कॉपी उपलब्ध कराई जाए।
- अगर अदालत द्वारा दिए गए समय में पुलिस अधिकारी शिकायत दर्ज नहीं करता या इसकी प्रति आपको उपलब्ध नहीं कराता या अदालत के दूसरे आदेशों का पालन नहीं करता , तो उस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई के साथ उसे जेल भी हो सकती है।
- अगर सूचना देने वाला व्यक्ति पक्के तौर पर यह नहीं बता सकता कि अपराध किस जगह हुआ तो पुलिस अधिकारी इस जानकारी के लिए प्रशन पूछ सकता है और फिर निर्णय पर पहुंच सकता है। इसके बाद तुरंत एफआईआर दर्ज कर वह उसे संबंधित थाने को भेज देगा। इसकी सूचना उस व्यक्ति को देने के साथ - साथ रोजनामचे में भी दर्ज की जाएगी।
- अगर शिकायत करने वाले को घटना की जगह नहीं पता है और पूछताछ के बावजूद भी पुलिस उस जगह को तय नहीं कर पाती है तो भी वह तुरंत एफआईआर दर्ज कर जांच - पड़ताल शुरू कर देगा। अगर जांच के दौरान यह तय हो जाता है कि घटना किस थाना क्षेत्र में घटी , तो केस उस थाने को ट्रांसफर हो जाएगा।
- अगर एफआईआर कराने वाले व्यक्ति की केस की जांच - पड़ताल के दौरान मौत हो जाती है , तो इस एफआईआर को Dying Declaration की तरह अदालत में पेश किया जा सकता है।
- अगर शिकायत में किसी असंज्ञेय अपराध का पता चलता है तो उसे रोजनामचे में दर्ज करना जरूरी है। इसकी भी कॉपी शिकायतकर्ता को जरूर लेनी चाहिए। इसके बाद मैजिस्ट्रेट से सीआरपीसी की धारा 155 के तहत उचित आदेश के लिए संपर्क किया जा सकता है।
आपके अधिकार
- अगर संज्ञेय अपराध है तो थानाध्यक्ष को तुरंत प्रथम सूचना रिपोर्ट ( एफआईआर ) दर्ज करनी चाहिए। एफआईआर की एक कॉपी लेना शिकायत करने वाले का अधिकार है। एफआईआर दर्ज करते वक्त पुलिस अधिकारी अपनी तरफ से कोई टिप्पणी नहीं लिख सकता , न ही किसी भाग को हाईलाइट कर सकता है। संज्ञेय अपराध की स्थिति में सूचना दर्ज करने के बाद पुलिस अधिकारी को चाहिए कि वह संबंधित व्यक्ति को उस सूचना को पढ़कर सुनाए और लिखित सूचना पर उसके साइन कराए। एफआईआर की कॉपी पर पुलिस स्टेशन की मोहर व पुलिस अधिकारी के साइन होने चाहिए। साथ ही पुलिस अधिकारी अपने रजिस्टर में यह भी दर्ज करेगा कि सूचना की कॉपी आपको दे दी गई है।
- अगर आपने संज्ञेय अपराध की सूचना पुलिस को लिखित रूप से दी है , तो पुलिस को एफआईआर के साथ आपकी शिकायत की कॉपी लगाना जरूरी है। एफआईआर दर्ज कराने के लिए यह जरूरी नहीं है कि शिकायत करने वाले को अपराध की व्यक्तिगत जानकारी हो या उसने अपराध होते हुए देखा हो।
- अगर किसी वजह से आप घटना की तुरंत सूचना पुलिस को नहीं दे पाएं, तो घबराएं नहीं। ऐसी स्थिति में आपको सिर्फ देरी की वजह बतानी होगी।
- अगर थानाध्यक्ष सूचना दर्ज करने से मना करता है , तो सूचना देने वाला व्यक्ति उस सूचना को रजिस्टर्ड डाक द्वारा या मिलकर क्षेत्रीय पुलिस उपायुक्त को दे सकता है , जिस पर उपायुक्त उचित कार्रवाई कर सकता है।
- एफआईआर न लिखे जाने की हालत में आप अपने एरिया मैजिस्ट्रेट के पास पुलिस को दिशा - निर्देश देने के लिए कंप्लेंट पिटिशन दायर कर सकते हैं कि 24 घंटे के अंदर केस दर्ज कर एफआईआर की कॉपी उपलब्ध कराई जाए।
- अगर अदालत द्वारा दिए गए समय में पुलिस अधिकारी शिकायत दर्ज नहीं करता या इसकी प्रति आपको उपलब्ध नहीं कराता या अदालत के दूसरे आदेशों का पालन नहीं करता , तो उस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई के साथ उसे जेल भी हो सकती है।
- अगर सूचना देने वाला व्यक्ति पक्के तौर पर यह नहीं बता सकता कि अपराध किस जगह हुआ तो पुलिस अधिकारी इस जानकारी के लिए प्रशन पूछ सकता है और फिर निर्णय पर पहुंच सकता है। इसके बाद तुरंत एफआईआर दर्ज कर वह उसे संबंधित थाने को भेज देगा। इसकी सूचना उस व्यक्ति को देने के साथ - साथ रोजनामचे में भी दर्ज की जाएगी।
- अगर शिकायत करने वाले को घटना की जगह नहीं पता है और पूछताछ के बावजूद भी पुलिस उस जगह को तय नहीं कर पाती है तो भी वह तुरंत एफआईआर दर्ज कर जांच - पड़ताल शुरू कर देगा। अगर जांच के दौरान यह तय हो जाता है कि घटना किस थाना क्षेत्र में घटी , तो केस उस थाने को ट्रांसफर हो जाएगा।
- अगर एफआईआर कराने वाले व्यक्ति की केस की जांच - पड़ताल के दौरान मौत हो जाती है , तो इस एफआईआर को Dying Declaration की तरह अदालत में पेश किया जा सकता है।
- अगर शिकायत में किसी असंज्ञेय अपराध का पता चलता है तो उसे रोजनामचे में दर्ज करना जरूरी है। इसकी भी कॉपी शिकायतकर्ता को जरूर लेनी चाहिए। इसके बाद मैजिस्ट्रेट से सीआरपीसी की धारा 155 के तहत उचित आदेश के लिए संपर्क किया जा सकता है।
Wednesday, September 5, 2012
SOLEMINIZATION OF HINDU MARRIAGE
Conditions relating to solemnization of Hindu marriages:
A marriage between any two persons (male and female) may be solemnized under this act, if at the time of the marriage the following conditions are fulfilled, namely: -
- Neither
party has a spouse living.
- Neither
party –
- is capable
of giving the valid consent to it in consequence of
unsoundness of mind; or
- though
capable of giving a valid consent, has been suffering form mental disorder
of such a kind or to such an extend as to be unfit for marriage and the
procreation of children: or
- has been
subject to recurrent attacks of in sanity;
- the male
has completed age of twenty one years and female the age of eighteen
years;
- the
parties are not within the degrees of prohibited relationship:
Provided that where a custom governing at
least one of the parties permits of a marriage between them, such marriage may
be solemnized, notwithstanding that they are within the degree of prohibited
relationship; and
- Where the
marriage is solemnized in the State of Jammu and Kashmir, both parties are
citizen of India domiciled in the territories to which this Act extends.
No marriage can be registered unless the
following conditions are fulfilled
- A ceremony
of marriage has been performed between the parties and they have been
living together as husband and wife.
- Neither
party has at the time of registration more than one spouse living.
- Neither
party is an idiot or lunatic at the time of registration.
- The
parties have completed the age of twenty one years at the time of
registration.
- The
parties are not within the degrees of prohibited relationship.
- The
parties have been residing within the district of the Marriage Officer for
a period of not less than thirty days immediately preceding the date on
which the application is made to him for registration.
The
registration of Hindu Marriages is necessary for the purpose of facilitating
the proof of Hindu Marriage apart from making available legal remedies such as
restitution of conjugal rights and judicial separation to either party on the
grounds specified under sections 9 and 10 respectively. Nullity and divorce are
the other remedies that could be availed of by either the wife or husband on
the grounds contained under sections 11, 12 and 13 of the Act. The above
remedies with the exception of divorce will be available for married persons,
whose marriage has been solemnized after the commencement of the Act. On the
other hand, the divorce proceedings could be taken in respect of any marriage
solemnized whether before or after the commencement of the Act on a petition
presented by either the husband or the wife on the ground prescribed under
section 13. The Act also provides for divorce by mutual consent.
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